इस ससार में जब कोई भी प्राणी जिस पल मे जन्म लेता है, वह पल(समय) उस प्राणी के सारे जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपुर्ण माना जाता है। क्यों की उसी एक पल को आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र की सहायता सें उसके समग्र जीवन का एक ऐसा लेखा जोखा तैयार किया जा सकता है, जिससे उसके जीवन में समय समय पर घटने वाली शुभ अशुभ घटनाऔं के विषायमें समय से पूर्व जाना जा सकता है।
जन्म समय के आधार पर बनायी गयी जन्म कुंडली के बारह भाव स्थान होते है । जन्मकुडली के इन भावों में नवग्रहो की स्थिती योग ही जातक के भविष्य के बारे में सम्पुर्ण जानकारी प्रकट करते है। जन्मककुंडली के विभिन्न भावों मे इन नवग्रहों कि स्थिति और योग से अलग अलग प्रकार के शुभ अशुभ योग बनते है। ये योग ही उस व्यिक्ति के जीवन पर अपना शुभाशुभ प्रभाव डालते है।
जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और केतु के एक ही और स्िथत हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है। सांसरिक ज्योततिषशात्र्य में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषशात्र्य कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक ज्योतिष विव्दानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया है की जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?
यह कालसर्प योग राजा, धनी, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चपरासी, गरीब आदि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में बन सकता है और जिनकी कुंडली में कालसर्प योग होता है, उनके पास सभी प्रकार की सुविधाएं होती हैं लेकिन फिर भी वे हमेशा पीड़ित होते हैं। कुछ तनाव, भय और असुरक्षा। जिस व्यक्ति ने नाश्ता कर लिया है, वह इस तरह आराम से नहीं बैठ सकता है, जिसकी कुंडली में कालसर्प योग होता है, वह हमेशा मृत्यु से डरता है। यह योग अन्य हानिकारक योगों की तुलना में अधिक खतरनाक है। यह योग किसी व्यक्ति को 55 वर्ष तक प्रभावित करता है और जीवन भर कुछ समय, यह कालसर्प योग की स्थिति पर निर्भर करता है। इस योग के कई प्रकार हैं और यहां इसका विस्तार से उल्लेख किया गया है।
वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है। उनकी उपनी कोई दृष्टी नही होती। राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भ्ारणी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सूर्य है। राहु -केतु के जो फलित परिणाम मिलते हैं, उनको राहु केतु के नक्षत्र देवों मे नामों से जोडकर कालसर्प योग कहा जायेगा तो इसमें अशास्त्री या समस्या कया है ? राहु के गुण -अवगुण शनि जैसे हैं ।
राहु जिस स्थान में जिस ग्रह के योग में होगा, उसका व शनि का फल देता है । शनि आध्यात्मिक चिंतन, विचार, गणित के साथ आगे बढने के गुण अपने पास रखता है। यही बात राहु की है। राहु का योग जिस ग्रह के साथ है वह किस स्थान का स्वामी है यह भी अवश्य देखना चाहिए। राहु मिथुन राशि में उच्च, धनु राशि में नींच और कन्या राशि में स्वागृही होता है राहू के मित्र ग्रह-शनि, बुध और शुक्र है। रवि-शनि, राहु इसके शत्रु ग्रह है। चन्द्र, बुध, गुरु उसके समग्रह है । कालसर्प योग जिस व्यक्ती के जन्मांग में है, ऐसे व्याक्ति को अपने जीवन में बहुत कष्ट झेलना पडता है । इच्छित फल प्राप्ति और कार्यो में बाधाएं आती है। बहुत ही मानसिक, शारीरीक एवं आर्थिक रुप से परेशान रहता है।
कालसर्प योग से पिडीत जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु अवरुध्द करते है। जिसके परिणामस्वरुप जातक की प्रगति नही होती। उसे जीवीका चलाने का साधन नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें पैदा होती है। जिससे उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जां के बोझ में दबा रहाता है और उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है।
जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है। दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है-
जब लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और उनके बीच समस्त अन्य ग्रह इनके मध्या मे हो तो अनंत कालसर्प योग बनता है । इस अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती । वह सदैव अशान्त क्षुब्ध परेशान तथा अस्िथर रहता है: बुध्दिहीन हो जता है। मास्ितक संबंधी रोग भी परेशानी पैदा करते है।
जब जन्मकुंडली के व्दितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतू हो तथा समस्त उनके बीच हों, तो यह योग कुलिक कालसर्प योंग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग वासुकि कालसर्प योग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के चौथे भाव में राहु और दसवे भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु और ग्याहरहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच हों तो यह योग पद्म कालसर्प योग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच कैद हों तो यह योग महापद्म कालसर्प योग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तथा बाकी के सारे इनकी कैद मे हों तो इनसे बनने वाले योग को तक्षक कालसर्प योग कहते है।
जब जन्मकुंडली के अष्टम भाव में राहु और दुसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को कर्कोटक कालसर्प योग कहते है।
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है।
जब जन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे भाव में केतु हो और सभी सातों ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो यह पातक कालसर्प योग कहलाता है।
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है।
जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते है।
कालसर्प योग शांति पूजन वैदिक शांति विरासत की परंपराओं के अनुसार किया जाना चाहिए। अनुष्ठान गोदावरी में पवित्र स्नान, मन और आत्मा की शुद्धि, वाचक के साथ शुरू किया जाता है। त्र्यंबकेश्वर भगवान की पूजा, महामृत्युंजय जिसके बाद ही मुख्य समारोह शुरू होता है।
कालसर्प योग मनभावन इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए, प्रायश्चित प्रस्ताव पारित करके शरीर को शुद्ध करने के लिए महत्वपूर्ण है। एक ही पाप लोगों को ज्ञान या अज्ञान के साथ प्रतिबद्ध के लिए परिहार प्राप्त करने के बाद अनुष्ठान करने का अधिकार हो जाता है। सभी पाप एक गाय, पृथ्वी, तिल, मक्खन सोने और इसी तरह के दस दान दान करने के लिए कहा जाता है।
यह भगवान गणेश की पूजा के साथ शुरू होता है। ऐसा करने से यह सभी बाधाओं और खतरे का सफाया कर दिया है और जल्दी ही उद्देश्य हासिल की है। गणेश पूजन के बाद, भगवान वरुण के रूप में भी कलश पूजन किया जाता है। इस समारोह में एक भगवान की पूजा की तरह पवित्र जल परमेश्वर के सम्मान से सम्मानित किया जाता है और पूजा की जाती है । सभी पवित्र शक्ति, पवित्र जल और सब भगवान और देवी इस कलश (बर्तन) के माध्यम से लागू कर रहे हैं। पूजा पुण्यं, कल्याणम, रिद्धिम, स्वस्तिम और श्रीह साथ स्वश्तिवचन के माध्यम से ही धन्य है।
भगवान शिव राहु, काल (समय की भगवान), सर्प (गोल्डन नाग), नवनाग (नौ नागों) के साथ प्रिंसिपल अनुष्ठान में सभी देवताओं के अभिषेक के बाद वे विश्वास के साथ सोलह आइटम का प्रतीक हैं जिसकी वजह से सभी देवता प्रसन्न और खुश हैं उनकी पूजा की जाती है Nine planets exude energy and is beneficial ( Yogkarak ) for us. By worshipping Planets/Stars humans gain strength, intellect and knowledge. Along with this they win over their enemy and make success out of it.
भगवान शिव की सभी अपराध और दुराचार के लिए माफी के लिए पूजा की जाती है। हम भगवान शिव की पूजा करने के बाद एक अधिनियम के लिए तत्काल परिणाम काटते और जब पूजा कर सभी दोषों को नाश करते है।
जुलाई | 1 , 2 , 3 , 5 , 7 , 9 , 10 , 13 , 15 , 16 , 17 , 20 , 22 , 23 , 24 , 26 , 29 , 30 |
---|---|
अगस्त | 1 , 3 , 6 , 7 , 8 , 11 , 13 , 14 , 15 , 16 , 19 , 20 , 21 , 24 , 26 , 27 , 28 , 30 |
सितंबर | 2 , 3 , 4 , 7 , 9 , 10 , 11 , 12 , 15 , 17 , 20 , 23 , 24 , 28 |
अक्टूबर | 1 , 2 , 3 , 6 , 8 , 9 , 12 , 14 , 15 , 17 , 19 , 22 , 24 , 26 , 28 , 29 , 30 |
नवंबर | 2 , 4 , 5 , 6 , 8 , 10 , 12 , 13 , 14 , 16 , 18 , 19 , 20 , 22 , 25 , 26 , 27 , 30 |
दिसंबर | 2 , 3 , 5 , 7 , 10 , 11 , 12 , 13 , 16 , 17 , 20 , 22 , 24 , 25 , 27 , 29 , 30 , 31 |
कालसर्प योग का प्रभाव व्यक्ति के जन्म कुंडली पर निर्भर करता है।
कालसर्प योग के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए ; "काल सर्प योग शांति पूजा" करनी चाहिए।
व्यक्ति की कुंडली मे कालसर्प दोष होने से सम्भंधित व्यक्ति को बहुत सारी कठिनाइयोका सामना करना पड़ता है | वह व्यक्ति को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक समस्याओंसे गुजरना पड़ सकता है |
जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली मे यह दोष है, उसे काल सर्प योग शांति अनुष्ठान करना चाहिए।
श्री सर्प सूक्तम, महामृत्युंजय मंत्र, विष्णु पंचाक्षरी मंत्र जैसे मंत्रों का जाप इस दोष को मिटाने वाले शांति पूजा मे होता है।
दक्षिणा मुख्य रूप से काल सर्प योग शांति पूजा या शांति हवन के लिए आवश्यक सामग्री पर पूरी तरह निर्भर करती है।
नाग पंचमी के दिन काल सर्प योग शांति पूजा करना अधिक उचित है।
श्रीक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर पुरोहित संघ के प्राधिकृत ब्राह्मण से पूजा करवाने के लिए त्र्यंबकेश्वर में किसी भी प्रकार की पूजा करने के इच्छुक सभी भक्तों से यह विनम्र अनुरोध है, रजिस्टर संख्या एफ-352।
F-352 पुरोहित संघ के ब्राह्मण स्थानीय हैं, त्र्यंबक में पैदा हुए और खरीदे गए और कई पीढ़ियों से पूजा करते हैं। क्योंकि उनके उक्त क्रेडेंशियल सुप्रीम कोर्ट ने उनके प्रतिनिधि को त्र्यंबकेश्वर मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में स्वीकार कर लिया है। (अब पुरोहित संघ के अध्यक्ष ट्रस्टियों में से एक हैं)
आप स्थानीय ब्राह्मणों को उनकी वेबसाइट पर पुरोहित संघ के लोगो, उनके घर पर विजिटिंग कार्ड या नेम प्लेट से पहचान सकते हैं। उन ब्राह्मणों का निवास मुख्य नगर के अंदर कुशावर्त कुंड या त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास भीड़भाड़ वाले स्थान पर है, मंदिर से दूर आश्रम में नहीं। साथ ही वे अपना उपनाम कभी नहीं छिपाएंगे जैसे अन्य कई अनधिकृत ब्राह्मण शास्त्री या पंडित या गुरुजी के साथ केवल एक (पहला) नाम लिखते हैं
स्थानीय ब्राह्मण आपको कभी भी कॉल नहीं करते और गलत पूजा मार्केटिंग करते हुए आपको बताते हैं कि कैसे वे और उनकी पूजा दूसरों से अलग है (त्र्यंबक में सभी पूजा प्रक्रिया समान है) और आपको पूजा और प्रक्रिया के बारे में भ्रमित करती है। आपका भ्रम वहाँ जीत है।
वे आपको रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, किसी भी होटल या सड़क के किनारे से मिलने / लेने के लिए कभी नहीं कहेंगे क्योंकि उनका अपना स्थान है जहाँ वे पूजा और प्रक्रिया के बारे में चर्चा कर सकते हैं। उनके नाम और पते से आप उनके स्थान पर आसानी से पहुंच सकते हैं।
नकली पंडितों से सावधान रहें या शास्त्री खुद को एक विशेषज्ञ के रूप में दावा करते हैं और आपको वहां की वेबसाइटों, फेसबुक / ट्विटर पेज या एड पर पूजा के 100% परिणाम की गारंटी देते हैं। साइट आदि।
अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण कभी भी किसी भी ब्राह्मण को अग्रिम (हाथ से या ऑनलाइन) न दें या न भेजें। पूजा से पहले पुष्टि करें कि क्या वह अधिकृत है, उसके साथ आमने-सामने बात करें (आप उसे फोन पर कभी नहीं समझ पाएंगे) और फिर पूजा करें और एक बार पूजा पूरी होने के बाद उसे दक्षिना दें।